रामेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर इतिहास, दर्शन समय, रहस्य और जरूरी जानकारी

परिचय
रामेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य में स्थित है और यह भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। इसे “दक्षिण का काशी” भी कहा जाता है। यह रामनाथस्वामी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है और हिंदू धर्म के चार धामों में भी इसकी विशेष जगह है।
यह वही स्थान है जहाँ भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई से पहले भगवान शिव की पूजा की थी। कथा के अनुसार, रावण वध के पश्चात ब्रह्महत्या दोष से मुक्ति पाने के लिए श्रीराम ने यहीं पर शिवलिंग की स्थापना की थी। इस शिवलिंग को रामलिंगम कहा जाता है। बाद में हनुमान जी कैलाश पर्वत से एक और शिवलिंग लाए, जिसे विश्वलिंगम कहा जाता है।
रामेश्वरम मंदिर धार्मिक आस्था का एक प्रमुख केंद्र है, जहाँ उत्तर भारत और दक्षिण भारत दोनों से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर में 22 तीर्थकुंड हैं, जिनके जल से स्नान करना पुण्यकारी माना जाता है। समुद्र के किनारे स्थित यह स्थल न केवल धार्मिक बल्कि प्राकृतिक दृष्टि से भी अत्यंत शांति प्रदान करता है।
रामेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का इतिहास
यह वो जगह है जहाँ भगवान श्रीराम ने रावण वध के बाद भगवान शिव की पूजा की थी, ताकि उन्हें ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति मिल सके। रावण एक ब्राह्मण था, इसलिए उसे मारना धार्मिक रूप से पाप माना जाता था। श्रीराम ने इस दोष से बचने के लिए समुद्र किनारे एक शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की आराधना की।
कहा जाता है कि उन्होंने पहले बालू (रेत) से एक शिवलिंग बनाया, जिसे आज रामलिंगम कहा जाता है। फिर हनुमान जी को असली शिवलिंग लाने के लिए कैलाश भेजा गया। जब हनुमान जी देर से लौटे, तो श्रीराम ने पूजा में विलंब न करते हुए वही बालू वाला शिवलिंग स्थापित कर दिया। बाद में हनुमान जी द्वारा लाया गया शिवलिंग भी वहीं स्थापित कर दिया गया, जिसे विश्वलिंगम कहा जाता है।
इस स्थान को रामनाथस्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है “राम के द्वारा पूजित स्वामी (शिव)”। यह मंदिर सिर्फ शिवभक्तों के लिए ही नहीं, बल्कि रामभक्तों के लिए भी उतना ही पावन है।
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मंदिर की कुछ गुप्त और रोचक बातें
- हनुमान जी द्वारा लाया गया शिवलिंग आज भी मंदिर में है, लेकिन उससे पहले पूजन बालू के बने रामलिंगम का ही होता है, यह परंपरा श्रीराम ने खुद तय की थी।
- 22 तीर्थकुंडों का जल स्वाद और तापमान में अलग होता है, जबकि सभी कुएं एक-दूसरे से बहुत पास हैं। यह रहस्य आज तक वैज्ञानिकों को भी चौंकाता है।
- इन कुंडों का जल कभी सूखता नहीं है, भले ही साल में कितनी भी गर्मी पड़ जाए।
- रामलिंगम रेत का बना था, लेकिन हजारों साल बीत जाने के बाद भी यह सुरक्षित और पूजनीय बना हुआ है।
- रामसेतु (जो श्रीराम ने वानरों की मदद से लंका तक पहुँचने के लिए बनवाया था) के अवशेष आज भी सैटेलाइट से देखे जा सकते हैं, और यह मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है।
- मंदिर की दीवारों और खंभों पर बेहद बारीक नक्काशी की गई है, जिनमें कुछ दृश्य इतने अद्भुत हैं कि लगता है जैसे कोई आज भी उन्हें देख रहा हो।
- कहा जाता है कि यहाँ जो भक्त सच्चे मन से प्रार्थना करता है, उसकी जन्मों की बाधाएं दूर होती हैं, क्योंकि यह स्थान राम और शिव – दोनों की कृपा से जुड़ा है।

रामेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर आरती / पूजा का समय
क्र. | आरती / पूजा का नाम | समय | विवरण |
---|---|---|---|
1 | मंदिर खुलने का समय | सुबह 4:30 बजे | दिन की शुरुआत महाअभिषेक से होती है |
2 | पाल अभिषेक / स्पटिक लिंग पूजा | सुबह 5:00 से 6:00 बजे तक | विशेष पूजा जो भक्त करवाते हैं |
3 | सामान्य दर्शन | सुबह 6:00 से दोपहर 1:00 बजे तक | भक्तों के लिए खुला रहता है |
4 | दोपहर विश्राम (नैवेद्यम) | दोपहर 1:00 से 3:00 बजे तक | इस समय मंदिर के द्वार बंद रहते हैं |
5 | अपराह्न दर्शन | दोपहर 3:00 से शाम 8:30 बजे तक | शाम की पूजा और दर्शन हेतु समय |
6 | रात्रि आरती | शाम 7:30 से 8:30 बजे तक | दिन की अंतिम पूजा और शिव आरती |
7 | मंदिर बंद होने का समय | रात 8:30 बजे | दर्शन समाप्त होने के बाद मंदिर बंद हो जाता है |
नोट करे : विशेष त्योहारों, श्रावण मास या शिवरात्रि पर समय थोड़ा बदल सकता है। अगर कोई भक्त स्पेशल अभिषेक या पूजा कराना चाहे तो सुबह जल्दी पहुँचना उचित होता है।
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रामेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर यात्रा गाइड
1. रामेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर कैसे पहुँचें?
रेलवे से:
रामेश्वरम का अपना रेलवे स्टेशन है – Rameswaram Railway Station (RMM), जो चेन्नई, मदुरै, त्रिची, कोयंबटूर और बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों से जुड़ा है।
अगर आप उत्तर भारत से आ रहे हैं तो पहले चेन्नई या मदुरै तक ट्रेन लें, फिर वहाँ से रामेश्वरम के लिए लोकल ट्रेन मिल जाती है।
सड़क मार्ग से:
रामेश्वरम अच्छी तरह से सड़कों से जुड़ा है। मदुरै से करीब 170 किमी दूर है, जहाँ से टैक्सी या बस मिल जाती है।
अगर आप खुद ड्राइव करके जा रहे हैं, तो पम्बन ब्रिज से होकर गुजरना एक शानदार अनुभव होगा – यह समुद्र के ऊपर बना हुआ पुल है।
हवाई मार्ग से:
रामेश्वरम का निकटतम एयरपोर्ट मदुरै (Madurai Airport) है, जो करीब 175 किमी दूर है। वहाँ से टैक्सी या बस से रामेश्वरम पहुँच सकते हैं।
2. कहाँ ठहरें?
हर बजट के हिसाब से होटल और धर्मशालाएँ उपलब्ध हैं।
- अगर आप मंदिर के पास रहना चाहते हैं तो रामनाथस्वामी मंदिर के आसपास कई धर्मशालाएँ और होटल मिल जाएँगे।
- कुछ प्रमुख होटल: Hotel Rameswaram Grand, Jiwan Residency, Daiwik Hotel आदि।
3. क्या-क्या देखना चाहिए?
- रामनाथस्वामी मंदिर – मुख्य ज्योतिर्लिंग के दर्शन यहीं होते हैं।
- 22 तीर्थकुंड – मंदिर परिसर में ही हैं, जिनमें स्नान करने की परंपरा है।
- धनुषकोडी – समुद्र के किनारे बसा एक वीरान लेकिन अद्भुत गाँव, जहाँ से रामसेतु दिखाई देता है।
- पम्बन ब्रिज – समुद्र के ऊपर बना भारत का पहला समुद्री ब्रिज, जिसे ट्रेन और सड़क दोनों पार करते हैं।
- राम तीर्थम, लक्ष्मण तीर्थम, सीता कुंड – पौराणिक स्थल जो श्रीराम की कथा से जुड़े हैं।
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4. क्या लेकर जाएँ?
- हल्के कपड़े (गर्मी ज़्यादा होती है)
- चप्पल / स्लिपर्स (मंदिर में जूते नहीं ले जा सकते)
- तौलिया और सूखा कपड़ा (22 कुंडों में स्नान के लिए)
- पूजा सामग्री (या मंदिर के पास से ले सकते हैं)
- पहचान पत्र (होटल चेक-इन आदि के लिए)
5. और कुछ ज़रूरी बातें
- मंदिर में मोबाइल, कैमरा ले जाना मना है, इसलिए पहले ही लॉकर में जमा कर दें।
- मंदिर में दर्शन सुबह जल्दी कर लें — भीड़ कम रहती है और शांति ज़्यादा मिलती है।
- अगर आप स्पेशल पूजा करवाना चाहते हैं तो पहले से बुकिंग करवा लें या वहाँ पहुँचकर काउंटर से जानकारी लें।
- गर्मी बहुत पड़ती है, इसलिए मार्च से जून के बीच जाना थोड़ा कठिन हो सकता है।
अक्टूबर से फरवरी का समय सबसे अच्छा रहता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यहाँ भगवान शिव को “रामनाथस्वामी” कहा जाता है, क्योंकि भगवान श्रीराम ने स्वयं यहाँ उनकी पूजा की थी।
हाँ, पौराणिक मान्यता है कि रावण वध के बाद श्रीराम ने ब्रह्महत्या दोष से मुक्ति पाने के लिए यहीं भगवान शिव की पूजा की थी और एक शिवलिंग की स्थापना की थी।
अक्टूबर से मार्च का मौसम सबसे अनुकूल होता है। इन महीनों में गर्मी कम होती है और यात्रा सुखद रहती है।
मंदिर के अंदर 22 तीर्थकुंड हैं, जिनमें स्नान को पवित्र और शुद्धि देने वाला माना जाता है। बहुत से श्रद्धालु दर्शन से पहले यहाँ स्नान करते हैं, लेकिन यह अनिवार्य नहीं है।
हाँ, मंदिर से कुछ दूरी पर “धनुषकोडी” नामक स्थान है, जहाँ से रामसेतु के अवशेष देखे जा सकते हैं। यह समुद्र के बीच में बना पौराणिक पुल था, जिसे श्रीराम ने लंका पहुँचने के लिए बनवाया था।
निष्कर्ष
रामेश्वरम सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि श्रद्धा, भक्ति और आस्था का वो संगम है जहाँ भगवान राम और भगवान शिव – दोनों की उपासना होती है। यह स्थान हमें सिखाता है कि धर्म सिर्फ रीति-रिवाज नहीं, बल्कि आत्मिक शांति और आध्यात्मिक अनुभव का जरिया है। यहाँ आकर जो मन की बात कहता है, वो न सिर्फ ईश्वर तक पहुँचती है, बल्कि भीतर तक सुकून देती है।